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सफर - मौत से मौत तक….(ep-23)

नंदू ने राजू को फोन किया और अगले दिन इतवार को अपनी लड़की मन्वी के साथ आने को कहा।

"मन्वी, वो जो शूट सिलाने दिया था वो सीलकर आ गया क्या? " राजू ने मन्वी से पूछा।

"वो तो परसों ही आ गया था, आँटी खुद दे गयी थी….और आपको ही तो पकड़ाया था" मन्वी ने कहा।

"अरे हाँ….मैं भूल गया….मैं कह रहा था प्रेस प्रुस करके दिया है या ऐसे ही दे गयी वो…." राजू ने फिर सवाल किया।

तभी अंदर से चाय लेकर आती रेनू बोली- "सील भी दिया और प्रेस भी कर दिया, लेकिन पूछने का कारण बताओ, कही निमंत्रण में जाना है तो सिर्फ बेटी को थोड़ी ले जाओगे, मैंने भी तो जाना होगा….जाते हुए मेरे भी दे देना इस्त्री वाले को, वो साड़ी में सिलवटें आ गयी है बहुत"

राजू ने हंसते हुए मन्वी से कहा "शादी ब्याह निमंत्रण….इनके अलावा कुछ सूझता नही तेरी माँ को……"

"हां….अच्छे कपड़े, तरह तरह का खाना और घूमने को जो मिलता है तब, वरना आप दुनिया भर के लोगो को घुमाते हो, हमे घुमाने के लिए आपके ऑटो में पेट्रोल नही है" रेनू बोली।

"कब तक दुसरो की शादी में मस्ती करोगी, अपनी बेटी की भी उम्र हो गयी है शादी की, और अब तुम ऑटो में नही लंबी  कार में घूमोगी, वो भी अपने दामाद की" राजू बोला।

"दामाद की कर में घूमने का शौक नही है मुझे,  दामाद के साथ बेटी को विदा करना है या मुझे…….(कुछ सोचकर) लेकिन अभी हमने लड़की की शादी की बात तो चलाई नही,  ...." रेनू बोली।

"मजाक कर रहे है पापा! आप भी ना माँ इनकी बातो को सीरियस मत लिया करो" मन्वी बोली।

"इस बार मजाक नही कर रहा….मैंने तेरे लिए एक लड़का देखा है, और कल हम दोनों उसे देखने जाएंगे" राजू बोला।

पापा की बात सुनकर मुंह बनाते हुए मन्वी बोली- "आप दोनो देखने जा रहे है तो मेरे कपड़ो की बात बीच मे कहाँ से आ गयी, मम्मी को मेरा शूट पहनाकर ले जाना है क्या…… "

"मैं और तुम….ना कि तुम्हारी माँ……इस मोटी को क्यो ले जाऊंगा अपने साथ, इसे देखकर तो लड़का , लड़की को देखने  की ख्वाहिश भी नही करेगा….बोलेगा माँ भैस है तो बेटी भी हाथी होगी" हंसते हुए राजू बोला।

अभी अभी राजू के पास चाय रखी थी रेनू ने, अभी राजू ने एक घूंट भी नही पिया की रेनू ने वापस उठाकर प्लेट में रखी और गुस्से से कहा- "आज या भैंस ने चाय नही बनाई आपके लिए, खुद जाकर बनाओ, और हां फ्रिज में रखे दूध को हाथ मत लगाना"

जैसे ही अंदर को जाने लगी तो राजू  उठकर गया और सामने जाकर खड़ा हो गया।
"हटो वरना चाय यही गिरा दूँगी"

राजू उसके हाथ से प्लेट पकड़ते हुए बोला- "अरे मजाक कर रहा था….जब मैं बहुत खुश होता हूँ तो मेरा मन तुम्हे छेड़ने को करता है, और तुम आज भी अपनी बेटी की बड़ी बहन जैसी लगती हो, है ना मन्वी! देख अपनी माँ को…कितनी खूबसूरत है। किसकी हीम्मत है जो भैंस बोलेगा।

मन्वी मुस्कराते हुए पापा को आंख दिखाने लगी-  "पापा! आप भी ना, पहले मम्मी को अकेले गुस्सा दिलातें हो और फिर मनाने की बारी आती है तो मुझे बीच मे घसीटने लगते हो…. "

"सुन लिया अपनी बेटी से भी….वो इतना बोलने को राजी नही की हाँ…. मेरी माँ सुंदर है…. तुम्हारी तारीफ करने में भी साथ नही दे रही" राजू ने तो माँ को बेटी के खिलाफ भड़का ही देना था कि मन्वी बोल पड़ी

"एक्सक्यूजमी! ये मम्मी मम्मी नही दुनिया की सबसे अच्छी मम्मी है….और आप दुनिया के सबसे किस्मतवाले पति जो आपको इतनी सुंदर पत्नी मिली है, मैं भगवान से रोज सुबह शाम एक ही दुआ मांगती हूँ कि……." मन्वी जानबूझकर रुक गयी ताकि वो लोग बेताबी से पूछे।

दोनो ने एक साथ पूछा - "….क्या??"

"यही की भगवान जब मैं घर पर ना होऊ तो मम्मी पापा जितना मर्जी झगड़ ले, लेकिन मेरे मौजूदगी में उन्हें आपस मे मत झगड़ने देना….मेरे लिए मेरे मम्मी पापा ही सबकुछ है और जब वो लोग झगड़ते है तो मुझे किसी एक कि तरफदारी नही दोनो का साथ देना होता है, और मैं कन्फ्यूज हो जाती हूँ कि किसका साथ दूँ, बस भगवान मेरी ये कन्फ्यूजन दूर कर देना" मन्वी बोली।

"बेटा कभी भी  गलत का साथ मत देना चाहे उससे तुम कितना मर्जी प्यार करती हो, हमेशा सच्चाई का साथ देना" राजू बोला।

"सही बात! और अगर हम दोनों में जिसकी गलती पकड़ में आ जाये,खुले जुबान से बोलना की तुम्हारी गलती है, माँ बाप बहुत कुछ सिखाते  है अपने बच्चों को, लेकिन जितना बच्चो को सिखाते है उससे ज्यादा सीखते भी है जिसका जिक्र वो नही करते" रेनू बोली।

"सही और गलत के लिए झगड़े में सही का साथ देना है ये तो जानती हूँ मैं….लेकिन आप दोनो के झगड़े बिना गलती के ही होते है, बेमतलब के झगड़े….अब ऐसे में तो मुश्किल होती है ना" मन्वी बोली।

"बात तो ठीक कहा, लेकिन कभी अपने पापा को समझा दिया कर, ये पहले छेड़ते है, तब मैं छेड़ती हूँ" रेनू बोली।

"येह झुटटी…. जब पहले में तेरी तारीफ करता था तो थेँक्स में टाल देती थी, कभी सोचा भी नही होगा कि दो तारीफ झुटटी ही सही मैं भी कर दूं……. और जब मैं इसके लिए गिफ्ट लाता तो….(पतली आवाज टेड़ा मुंह बनाते हुए राजुने रेनू की एक्टिंग करते हुए कहा) ….मैं इसे हमेशा संभाल के रखूंगी….कभी ये सोचा कि मैं भी एक गिफ्ट दे दूं। आज मैं दो बात सुनाता हूँ तो चार बात सुनाती है मुझे"

"तभी तो….पापा! समझो माँ की बात…. पहले आप तारीफ करते थे तो वो थेँक्स में बात टाल देती थी, आपने क्या किया??….तारीफ करनी छोड़ दी….फिर आपके गिफ्ट के बदले गिफ्ट नही मिला तो आपने क्या किया??? गिफ्ट देना छोड़ दिया…. बस अब माँ को फिक्र है कि दो बातों के बदले आपको बातें नही सुनाई तो आप वो दो बात सूनाना भी छोड़ दोगे" मन्वी हंसते हुए बोली।

"अरे मेरी बेटी इतनी समझदार हो गयी, मुझे आज समझ आया इसकी चार बातो वाला लॉजिक क्या है…. ये हमेशा सुनना चाहती है मेरी दो बातें" राजू बोला।

"बाप- बेटी की मिली भगत खत्म हो तो क्या आप बताने का कष्ट करोगे की कल कहाँ जाने का प्रोग्राम बनाया है।" रेनू ने सवाल किया।

"अपना नंदू….उसने बुलाया है….उसका बेटा समीर के रिश्ते की बात मन्वी से चलाने के लिए….कल हम दोनों वहीं जा रहे है।" राजू बोला।

"अच्छा वो नंदू भाईसाहब का लड़का समीर….शायद बड़ा वकील बन गया है अब" रेनू बोली।

"वकील तो बन ही गया था, लेकिन अब उसने एक बड़ा सा मकान ले लिया उधर ही, तभी तो नंदू भाईसाहब भी वहीं शिफ्ट हो गए है" राजू ने कहा।

"नंदू भाईसाहब ने भी बहुत मेहनत की और आज उसी का फल उन्हें मिल रहा है, इतना अच्छा लड़का….और अगर रिश्ते की बात करना चाहते है तो खुशी की बात है,एक बार मन्वी से पूछ लो कि वो क्या चाहती है, देखा तो उसने भी है समीर, समीर को तो जानती ही है वो" रेनू बोली।

"पापा मेरे लिए कुछ गलत सोच ही नही सकते, मुझे कोई एतराज नही है, वैसे भी इसी बहाने नंदू अंकल से भी मिल आएंगे।" मन्वी ने कहा।

"हाँ हम तीनों चलेंगे" रेनू बोली।

"नही रेनू! घर को ऐसे छोड़कर तीनो का जाना ठीक नही है। एक बार बात बन जाये, फिर मैं तुम्हे भी ले चलूंगा,वैसे भी तीन लोग तो वैसे भी शुभ नही माने जाते।" राजू ने कहा।


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आज शाम बहुत बैचेन थी मन्वी। एक अलग तरह का एहसास था। मन्वी समीर को भली भांति जानती थी, और आज जो मन्वी के दिल मे आंधी आयी थी वो अपनी सहेली ऋषिता को भी नही बता सकती थी। बस मन ही मन  सोचे जा रही थी

"""""मुझे तो याद भी नही की लास्ट बार कहाँ पर हमारी लड़ाई हुई थी, जब भी हम मिलते और चार बाते होती तो शायद एक मुद्दा ऐसा मिल ही जाता था जिसपर हमारी दोनो के ख्यालात नही मिलते थे, और हमारा झगड़ा हो जाता था, वकीलों वाले गुण तो बचपन से थे उसमें, मुझे बहुत परेशान करता था लेकिन फिर भी मुझे पब्लिक स्कूल का वह लड़का बहुत पसंद था। क्योकि सिर्फ परेशान नही मेरी परवाह भी बहुत करता था वो…… उसके साथ झगड़ते हुए घर आती थी, कभी सायकिल की रेस तो कभी जल्दी छुट्टी होने पर दोनो पैदल ही साइकिल लेकर चलकर आया करते थे।  ऋषिता उस समय से आज तक मेरी बेस्ट फ्रेंड रही है, जो हर पल मेरे साथ रहती थी, मेरे और समीर के बहस में वो हमेशा मेरा साथ देती थी चाहे में गलत होती या सही।
  शाम को एक साथ घर की तरफ आने का एक अलग ही मजा था, एक तरफ समीर और उसका दोस्त नवीन अपनी अपनी साइकिल में जाते थे तो एक तरफ मैं अपनी सहेली ऋषिता को अपने साथ ही बैठाकर लाती थी। ये बुद्धू मन तो जोड़ियां बना बैठा था मैं समीर को सोचती और ऋषिता भले सोचती ना हो लेकिन मैं उसके लिए नवीन को सोच लेती। ये सोच मैंने अपने तक सीमित रखी हर लड़की की तरह। क्योकि सपने और हकीकत बहुत अलग होते थे। लेकिन जो भी है हमारी दोस्ती बहुत प्यारी और नटखट थी।

उस दिन बहुत उदास थी मैं जब समीर ने बताया कि वो बाहर पढ़ाई के लिए जाएगा, और आगे की पढ़ाई होस्टल में ही करेगा। अकेले बैठकर रोई भी थी आज सोचती हूँ तो हँसी आती है खुदपर…. तब प्यार इश्क कुछ नही पता था, सिर्फ दोस्त से बिछड़ने का गम था। अगर आज का जमाना होता तो शायद मैं उसे प्यार मे जुदाई ही नाम देती, लेकिन सच कहूं तो वो प्यार नही एक दोस्ती थी। और उसके बाद वैसी दोस्ती कभी किसी से नही हुई। जितना झगड़ा उससे होता था, किसी और लड़के से करती तो वो चार बाते सुना कर भाग जाता और दोबारा पूछता भी नही था।
तब समीर की बहुत याद आती थी,क्योकि हमारे झगड़े सिर्फ एक से दो घंटे की वेलिडिटी के साथ होते थे। और दो घंटे बाद वापस झगड़ा करके रिचार्ज करना पड़ता था।

"तू भी ना….क्या क्या सोचने लगी…." खुद का माथा ठनकते हुए मन्वी खुद से बोली।

"क्या पता उन्हें कोई और झगड़ालू मिल गयी होगी…." मन्वी के दिमाग मे एक पल के लिए ख्याल आया कि मन्वी ने ये सोचकर खुद को तसल्ली दे दी कि नकारात्मक सोच दिमाग मे नही लानी चाहिए, समीर भी शायद मुझे पसंद करता होगा जैसे मैं करती हूँ, वरना जाते समय इतना इमोशनल नही होता वो, उस दिन पहली बार उसकी आंखें नम थी,और उसने मुस्कराते हुए कहा था - "मुझे यकीन नही हो रहा कि मैं दूसरे शहर में होस्टल में रहकर पढूंगा, खुशी से पागल ना हो जाऊं कही आज"

"लेकिन तुम्हारी आँखों मे तो खुशी नही है" मन्वी ने कहा।

समीर आंखों को हाथ से पोछते हुए बोला- :- खुशी के है….ये खुशी और गम दोनो में बहते है"

" उस दिन के बाद एक दिन मुलाकात हुई थी तो पापा भी साथ मे थे, तब हम दोनों अजनबी बनकर खड़े थे, हाई तक नही बोल पाए एक दूसरे को"  मन्वी ने सोचा।

"अब कल का दिन कैसा रहेगा जब मैं उसके घर पर….वो खुश होयेगा या दुखी पता नहीं ….लेकिन मैं बहुत खुश हूं ये सोचकर कि जिसे बचपन मे सोचा वो ही मिलेगा….खैर वो क्यो दुखी होगा….हँहँ….वो तो ये सोचकर परेशान हो जाएगा कि घर पर भी केस लड़ना पड़ेगा और कोर्ट में भी"  सोचते हुए मन्वी ने एक मुस्कराहट के साथ करवट बदल ली और कोशिश करने लगी कि सो जाउँ।


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1 Comments

Shalini Sharma

22-Sep-2021 11:58 PM

Very nice

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